काबे सुरेशवा, आज पिक्चर देखय क मन करत हौ बे...चल टी.वी.
और सी.डी. प्लयेर किराये पर लियावल जाय..I ये बात सुनते ही मेरे
भी कान खड़े हो गये.. बात सन २००३ की है जब मैं बी.एस.सी. द्वितीय वर्ष में था..I
ब्रोचा छात्रावास, कमरा नं १७८ डी. ब्लाक में रहता
था.. I परीक्षा की घड़ी नजदीक थी..I पढ़ाइ
चरम पे थी..I तभी मेरे एक मित्र राना को पिक्चर देखने का भूत
सवार हुआ..I उस समय हंगामा, चलते-चलते,
कल हो ना हो, मुन्नाभाइ एम.बी.बी.एस जैसी फिल्में
खूब चल रही थी..I उनका गाना भी खूब गाते थे हमलोग..I खैर जब मित्र राना का मन बन ही गया था तो पिक्चर देखना ही था...I उन दिनों
करौन्दी गेट खुला करता था और हमलोग करौंदी से किराये पर टी.वी. और सी.डी. प्लयेर लाकर
फिल्मों का आनन्द ले लिया करते थे..I परीक्षा का वक्त था और प्राक्टर
वाले बाबू लोग भी थोड़ा सख्त थे...रिक्शे पर जो सामान अंदर आये या बाहर जाये,
वो लोग अक्सर चेक किया करते थे..I इस बात से हमलोग
अवगत थे..I मैने राना से कहा..मालिक मन त हमरव करत हौ पिक्चर
देखय क लेकिन टीविया अंदर कैसे लियावल जायी..I और सारे ओकर किराया
१५० रू. हौ..पैसा बा एतना..I राना थोड़ा सोचा फिर बोला..अबे हमलोग
अकेले थोडे ही देखेंगे..मिश्रा, भोभो, ढीलू,
कक्का, मल्लू और सूर्या भी तो हैं..I सबसे चन्दा लेते हैं.. I ये सब मेरे परम मित्र हैं और
इन सब की विशेषता किसी और दिन बताउंगा..I खैर हमलोग आपस में बात
किये और पैसे का प्राब्लम साल्व हो गया..I अब रही बात टी.वी.
और सी.डी. प्लयेर अंदर लाने की...कक्का जिन्हे हम आज भी कक्का ही बुलाते हैं..उन्होने
अपने ग्यान चक्षु खोले और अचानक बोले,
अबे मिश्रा तुम्हारे रूम में कार्टून है न उसको खाली करके मोड़
लो..और १०-१२ किताबें और एक चद्दर अलग से हांथ में लेकर तुम और सुरेशवा करौन्दी पहुंचो
हमलोग साइकल से आ रहे हैं..I हमने वैसा ही किया..क्योन्कि कक्का
हमारे बड़े चतुर दिमाग के है और उनकी काबिलियत पे शक हमें आज भी नही है..I मै और मिश्रा रिक्शा से पहुंचे..मेरे बाकी दोस्त साइकिल से करौन्दी "
नन्हे टी.वी. सेंटर" वाले के यहां पहले ही पहुंच चुके थे..I हमने उस दिन तीन फिल्में सेलेक्ट की तभी मिश्रा बोला "भैया कोइ नयी भूतहा
मूवी है"... नन्हे बोला..नही भैया एक
आयी थी "प्यासी डायन" लेकिन अभी थोड़ी देर पहले एक लड़का लेकर चला गया...I
बाकी जो है उ तो आप पहिले ही देख चुके हैं.. उस समय मिश्रा का चेहरा
देखकर ऐसा लगा जैसे शेर के पंजे से कोइ शिकार छीन लिया हो...I वो बड़बड़ाने लगा..हम कह रहे थे हमको साइकल से आने दो हम पहले आकर बढ़िया बढ़िया
मूवी सेलेक्ट कर लेते..साला इतना दिन बाद टी.वी. और सी.डी. प्लयेर ले चल रहे हैं कौनव
बढ़िया मूवी ही नही है..I जाओ देखो तुम लोग..मै नही देखुंगा..दरअसल
मिश्रा जी को भूतही मूवी नही..उस मूवी के कुछ दिल मचला देने वाले सीन बहुत अच्छे लगते
थे..वो इतनी बार उसे रीवाइंड करके देखता था कि हमलोग खिसिया जाते थे..I उसके बाद हम कमरे से बाहर..मिश्रा जी कमरे के अंदर अकेले डायनों के साथ दहला-पकड़
खेलते थे..I मिश्रा का गुस्सा देखकर कक्का खिसिया गये..बोले..ठीक
है तुमको नही देखना है तो मत देखो चन्दा वाला पैसा तुमको वापस नहीं मिलेगा...और नन्हे
से बोले...बाबू कल नौ बजे तक तुमको तुम्हारा टी.वी. और सी.डी.प्लेयर वापस कर देंगे
I कक्का ने कार्टून सेट किया, नीचे टी.वी. और सी.डी.प्लेयर...उसके
ऊपर सारी किताबें और चद्दर से ढककर मेरे साथ रिक्शे में बैठकर हास्टल की ओर चल दिये
I बाकी दोस्त पहले ही हास्टल में आकर माहौल बनाना चालू कर दिये थे..I
राना ने सबका खाना मेस से रूम पर ही मंगा लिया था..I मै और कक्का आराम से रिक्शे से छात्रावास की ओर आ रहे थे..I जैसे करौंदी गेट पर पहुन्चे प्राक्टर वाले साहब ने रोक लिया...पूछा..क्या है
इसके अंदर...?? एक बार मैं थोड़ा सकपका गया..कक्का पहले ही हमको
बोल दिये थे... तुम बस शांत रहना..I मै चुपचाप प्राक्टर वाले
साहब को देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था...आज अगर पकड़ाये..बहुत कुटायेंगे..I
तभी कक्का बोले...किताबे हैं सर इसमें..मेरे भैया रूम खाली कर के जा
रहे थे तो जो उनकी पुरानी किताबें थी वही लेने गये थे...I फिर
मेरी ओर देखते हुए कक्का बोले...सुरेश..सर को कार्टून खोलकर दिखादो...I साला मैं कक्का का कान्फिडेन्स देखकर चकित रह गया..I मैं कपकपाते हाथों से चद्दर हटाकर कार्टून खोलकर..ऊपर की दो मोटी किताबे प्राक्टर
चचा को दिखाइ..I वो बोले बड़ी मोटी-मोटी किताब है...बहुत अच्छे
बेटा..ऐसे ही मन लगाकर पढ़ो..ठीक है जाओ..I जैसे ही उन्होने बोला
जाओ...ऐसा लगा रिक्शावाले से रिक्शा छीनकर झट से हास्टल पहुंच जाउं...I उस दिन मैने कक्का से सीखा..यदि झूठ बोलकर आपका और आपके घनिष्ठ मित्रों की
रात अच्छी गुजरने वाली हो तो...झूठ बोल देना चाहिये..I खैर हमलोग
हास्टल पहुंच गये...सबका खाना पहिले से ही मेरे रूम में आ चुका था..I टी.वी. और सी.डी. प्लयेर सेट हुआ..हम खाना खाते-खाते, आवाज धीमी कर पिक्चर देखने लगे..I हम ८ लोग चोरी से पिक्चर देख रहे थे..बाकी के छात्र पढ़ाइ
कर रहे थे..I रात के १० बजे से पिक्चर शुरू हुइ और सुबह के ६
बजे तक हमने ३ फिल्में देख डाली.. I मिश्रा जी को नींद आ रही
थी तो दूसरी फिल्म के बीच में ही सोने चले गये..I लगभग ६:३० बजे
हमलोग भी सो गये..I अब मन थोड़ा हल्का हुआ था..उठने के बाद जम
कर पढ़ाइ करेंगे यही सोचकर सो गये...I हमारे प्यारे मिश्रा जी
जिनसे "प्यासी डायन" छूट गयी थी..सुबह ८ बजे ही नन्हे के यहां पहुंच गये...और
उसकी सी.डी. ले आये भाइ साहब...I मेरे कमरे से टी.वी. और सी.डी.
प्लयेर लेकर जाने लगे...कक्का उठ गये...उन्होने मिश्रा से पूछा.."कहां टी.वी. और सी.डी. प्लयेर लेकर जा रहे हो बे
??" मिश्रा जी बोले..नन्हे को लौटाने जा रहा हूं..तुम लोग सो जाओ.....I
और फिर मिश्रा जी ने अकेले अपने रूम में "प्यासी डायन" देखी..I उस दिन मिश्रा से एक बात सीखी...जिस चीज का सौक हो..उसे पूरा जरूर करना चाहिये...I हमलोग लंच के समय सो कर उठे...देखा तो मिश्रा जी कुटिल मुस्कान से हमलोगों
की तरफ़ देख रहे थे..I फिर अचानक से बोल पड़े...अबे जल्दी से लंच
वंच करलो, तुम सबको एक सरप्राइज देना है....हमलोग सोचे साला केमेस्ट्री
का कोइ पेपर जुगाड़ किया है..क्योंकि अगली परीक्षा उसी कि थी..I खैर हमसब फ्रेश होकर, नहा-धोकर मिश्रा के रूम पर पहुंचे...देखे
तो मिश्रा जी टी.वी. और सी.डी. प्लयेर सेट करके, प्यासी डायन
का एक दिल मचला देने वाला सीन पाज किये थे, हमलोग समझ गये...साला
अकेले बाकी का पैसा नही देना चाहता इसलिये हमको भी दिखायेगा फिर हम्हीं से चन्दा लेकर
टी.वी. और सी.डी.प्लेयर वापस करेगा....I और हुआ भी वही...I
हम सबने हसते हुए "प्यासी डायन" साथ मिलकर देखी...सच कहूं
तो बड़ा मजा आया....I अब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से जाने के
बाद हम सब अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं..अच्छा जीवन-यापन कर रहे है...I "प्यासी डायन" जैसी अनगिनत फिल्में आसानी से उपलब्द्ग हैं देखने
के लिये...मगर हास्टल में जिस तरह से हमने पिक्चर देखी....वो आज भी याद है..और हम जब
भी बात करते है...उन सब क्षणों को याद करके खूब ठहाके लगाते हैं...II
डा. सुरेश कुमार