कारवां
गुज़र चुका था, मंज़िलें थी गुमशुदा.........
वक्त की
मज़ार पे, अस्कों में डूबा था लम्हा.....
रास्ते
मायूस थे कि, हमसफ़र भी ना मिला.......
थी डगर
वीरान सी, गुम हुआ दिल काफ़िला......I
शुक्र
है उस वक्त का, खुदपर यकीं ये जब हुआ..
है खुदा
तू साथ मेरे, क्या मिला और क्या गया...
वक्त को
मंज़ूर कर, लम्हों की उंगली थाम ली...
ज़िन्दगी, रंगीन चादर ओढ़े हुए दिल काफ़िला...II
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S.Kumar.........
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