उठा के मुझको मेरा मन, धरा पे फ़ेंक देता है.
मुकर जाता है, मुझसे ही, गर मुझको देख लेता है,
जो रोता हूँ, तो कहता है, मेरी आँखों में पानी है.
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[१]
मै अपने आप को ही आज़, सहसा देख ना पाया,
खुला था दिल, खुला दिमाग, कुछ भी सोच ना पाया,
अपने आप को दे दी, ये कैसी निशानी है ?
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[२]
मेरी परछाई भी मुझसे, अब पीछा छुड़ाती है,
मै जितना पास आता हूँ, वो उतना दूर जाती है,
वो सीधी है, मै लंगड़ा हूँ, ऐसा दिख रहा मुझको,
पकड़ना चाहता तो हूँ, वो पल में भाग जाती है,
समझ ना पा रहा कुछ भी, कैसी ये कहानी है ?
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[३]
समय आता, चला जाता, उसे मैं देख ना पाता,
निकट होता था मेरे वो, मगर कुछ सोच ना पाता,
उचित उपयोग ना करता, उसे मै व्यर्थ करता था,
उसे मैं फ़ेंक देता था, गर मेरे पास रहता था,
जो ना आया, तो अब किस्मत, लूजी-लंगड़ी-कानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[४]
समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,
मेरे जीवन में तेरा मुल्य, समझ ये आ गया मुझको,
तू इश्वर है, विधाता है, मन में रख लिया तुझको,
ये जीवन तुझपे अर्पण हो, अब मैने ठानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[५]
20 comments:
bhaut hi bhaavpur abhivaykti....
Saagar ji Hausalafazai ke liye shukragujara hoon....Aapaka swagat hai mere blog pe....
बहुत ही खूबसरत रचना...
आप सरल और सहज मुहावरे में इस कठिन समय को कविता में साधते हैं।
सुषमा जी, धन्यवाद....मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है..
मनोज जी... शुक्रिया...ये समय का सच है....
मेरी परछाई भी मुझसे, अब पीछा छुड़ाती है,
मै जितना पास आता हूँ, वो उतना दूर जाती है,
वो सीधी है, मै लंगड़ा हूँ, ऐसा दिख रहा मुझको,
पकड़ना चाहता तो हूँ, वो पल में भाग जाती है,
नीरवता में जीने का सार्थक प्रयास शब्द को स्वर प्रदान करता सृजन सराहनीय है ...शुभकामनायें जी ../
उदय वीर सिंह जी, बहुत शुक्रगुजार हूँ आपके सम्पूरक भाव के लिये...
आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है....
समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,
मेरे जीवन में तेरा मुल्य, समझ ये आ गया मुझको,
तू इश्वर है, विधाता है, मन में रख लिया तुझको,
ये जीवन तुझपे अर्पण हो, अब मैने ठानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है.....
...sach jisne samay ko pahchan liye usse samjho jeena seekh liya.... jab jaago tabhi savera...
bahut badiya prastuti..
बहुत खूबसूरती से समय का सच लिखा है ..
Kavita ji...shukriya...mera utsaah badhaane ke kiye...
welcome to my blog....
Sangeeta Swaroop Ji...dhanyawaad...
welcome to "Meri Kalpanaayen"...
समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,....
........खूबसरत रचना!
Niwedita Ji..dhanyawad..
swagata hai aapaka..
बहुत ही खूबसरत रचना...
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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Vidhya ji..shukriya..
सुरेश जी एक अच्छी रचना के लिए बधाई...
S.M.Habib Ji..tahe dil se shukriya ada karataa hoon...
aapaka swagata hai mere blog par...
umda rachana.....bahut sundar
Ana ji..taareef ke liye shukragujaar hoon...
swaagata hai aapakaa mere blog par..
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