About Me
- Suresh Kumar
- Jaunpur, Uttar Pradesh, India
- "PricE of HappinesS"... U can tring tring me on +91 9981565685.
Monday, December 24, 2012
Thursday, December 06, 2012
दिल के करीब....
सूखे है ख्वाइशों के पत्ते,
मेरी मोहब्बत की शाख़ के,
************************************
- S.Kumar
जो तू इन्हे छू ले, तो इनमें,
हरियाली छाये I
हूं फिरता अज़नबी सा,
तेरे अपने शहर में,
जो तू अपनी चौखट पर बुलाले,
तो मेरा घर बस जाये II
**********************
मेरी आंखों में एक समंदर बसता है,
जिसकी लहरों में सिर्फ़,
तेरा चेहरा दिखता है,
जो हुए कभी उदास तो,
मेरा चेहरा पढ़ लेना,
कोइ है जो सिर्फ़,
तुमपे मरता-मिटता है I
लोगों की नादानियां तो देखो,
मेरी तन्हाइयों को इश्क का दर्ज़ा देते हैं,
उन्हें पता ही नही, इश्क से भी परे,
कहीं इस ज़हां में, तेरा-मेरा रिश्ता पलता है II ************************************
- S.Kumar
Monday, August 13, 2012
यादों के परिन्दें....
मेरी यादों के परिन्दों
का आशियां,
तेरा ज़हां है I
तू ही इनकी ज़मीं, तू ही इनका,
आसमां है I
इन्हें अपने से दूर, कभी मत करना,
वरना लोग पूछेंगे,
वो परिन्दें कहाँ है, वो परिन्दें कहाँ है I
---------------------------Suresh KumarMonday, June 25, 2012
Monday, March 26, 2012
वह अपने घर चला............
चुप्पी के घाट पर,
मौन की नौका लिये,
तन्हा लहरों संग,
इक गुमनाम शहर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
शून्य से शिखर की,
अब कोई ख्वाइश नहीं,
जीवन की सप्तरंगी चाहतों की,
अब कोई नुमाइश नहीं,
सर्व-रस समेटे,
इक ऐसी डगर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
जिस आँगन में फ़ूला, फ़ला,
जिन रस्तों पर दौड़ा, चला,
जिन गलियों में गाये गाने,
वो आँगन क्यों सूना पड़ा,
जो पूछा रोती आँखों से,
दरिया आँसू का बह चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
मंजिल तेरी, मंज़िल मेरी,
कह रही चिघ्घाड़े सुन ज़रा,
ना रहे गुमान तनिक भर भी,
जाना सबको है एक जघा,
जब ज़ीवन है, जी भर के जी,
क्या सोचे इत-उत-यहाँ-वहाँ,
जिसे देख रहा वो मिट्टी है,
वह कहाँ चला, वह किधर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
सुरेश कुमार
२६/०३/१२
मौन की नौका लिये,
तन्हा लहरों संग,
इक गुमनाम शहर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
शून्य से शिखर की,
अब कोई ख्वाइश नहीं,
जीवन की सप्तरंगी चाहतों की,
अब कोई नुमाइश नहीं,
सर्व-रस समेटे,
इक ऐसी डगर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
जिस आँगन में फ़ूला, फ़ला,
जिन रस्तों पर दौड़ा, चला,
जिन गलियों में गाये गाने,
वो आँगन क्यों सूना पड़ा,
जो पूछा रोती आँखों से,
दरिया आँसू का बह चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
मंजिल तेरी, मंज़िल मेरी,
कह रही चिघ्घाड़े सुन ज़रा,
ना रहे गुमान तनिक भर भी,
जाना सबको है एक जघा,
जब ज़ीवन है, जी भर के जी,
क्या सोचे इत-उत-यहाँ-वहाँ,
जिसे देख रहा वो मिट्टी है,
वह कहाँ चला, वह किधर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I
सुरेश कुमार
२६/०३/१२
Saturday, January 21, 2012
ज़िन्दगी.....एक खोज़.....
ज़िन्दगी तू क्या है ?
कभी दर्द-ए-दिल,
कभी दर्द-ए-दवा है,
ऐ ज़िन्दगी तू क्या है?
अपनी बनायी राहों पर,
कभी दौड़े तू, कभी रूके,
अपने वसूलों की ख़ातिर,
खड़ी रहे तो, कभी झुके,
जिसकी दिशा समझ ना पाया,
तू इक ऐसी हवा है I
ज़िन्दगी तू क्या है ?
***********************
अब इन सपनों की नगरी में,
कुछ ख्वाब तेरे कुछ ख्वाब मेरे है,
अतीत के पन्नों मे दबी प्रेम-पंक्ति पर,
प्रेमयुक्त लाल स्याही के घेरे है,
शब्दों को कुरेद कर ज़ेहन में बसा लिया,
जिनमें से कुछ शब्द तेरे और कुछ मेरे है I
*********************************
ऐ शाम-ए-ज़िन्दगी,
अब सूरज ढल चला,
जीवन की धुंधली राहों पर,
खुद का भी ना पता,
आँखों में समन्दर लिये फ़िरते है,
खुद की तलाश में,
ऐ राह-ए-ऱकीब,
मंज़िल है गुमशुदा I
सुरेश कुमार.......
२१/०१/२०१२
कभी दर्द-ए-दिल,
कभी दर्द-ए-दवा है,
ऐ ज़िन्दगी तू क्या है?
अपनी बनायी राहों पर,
कभी दौड़े तू, कभी रूके,
अपने वसूलों की ख़ातिर,
खड़ी रहे तो, कभी झुके,
जिसकी दिशा समझ ना पाया,
तू इक ऐसी हवा है I
ज़िन्दगी तू क्या है ?
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अब इन सपनों की नगरी में,
कुछ ख्वाब तेरे कुछ ख्वाब मेरे है,
अतीत के पन्नों मे दबी प्रेम-पंक्ति पर,
प्रेमयुक्त लाल स्याही के घेरे है,
शब्दों को कुरेद कर ज़ेहन में बसा लिया,
जिनमें से कुछ शब्द तेरे और कुछ मेरे है I
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ऐ शाम-ए-ज़िन्दगी,
अब सूरज ढल चला,
जीवन की धुंधली राहों पर,
खुद का भी ना पता,
आँखों में समन्दर लिये फ़िरते है,
खुद की तलाश में,
ऐ राह-ए-ऱकीब,
मंज़िल है गुमशुदा I
सुरेश कुमार.......
२१/०१/२०१२
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