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Monday, March 26, 2012

वह अपने घर चला............

चुप्पी के घाट पर,
मौन की नौका लिये,
तन्हा लहरों संग,
इक गुमनाम शहर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I


शून्य से शिखर की,
अब कोई ख्वाइश नहीं,
जीवन की सप्तरंगी चाहतों की,
अब कोई नुमाइश नहीं,
सर्व-रस समेटे,
इक ऐसी डगर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I


जिस आँगन में फ़ूला, फ़ला,
जिन रस्तों पर दौड़ा, चला,
जिन गलियों में गाये गाने,
वो आँगन क्यों सूना पड़ा,
जो पूछा रोती आँखों से,
दरिया आँसू का बह चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I

मंजिल तेरी, मंज़िल मेरी,
कह रही चिघ्घाड़े सुन ज़रा,
ना रहे गुमान तनिक भर भी,
जाना सबको है एक जघा,
जब ज़ीवन है, जी भर के जी,
क्या सोचे इत-उत-यहाँ-वहाँ,
जिसे देख रहा वो मिट्टी है,
वह कहाँ चला, वह किधर चला,
वह अपने घर चला, वह अपने घर चला I


                                           सुरेश कुमार
                                           २६/०३/१२

1 comment:

रविकर said...

mast masti mastaan |
behad badhiya taan ||