जिन्दगी का हर
लम्हा तुम्हें सौंप दिया,
बस ये सोचकर कि तुम
मेरी जिन्दगी हो.
जी करता है, वक्त के
अंतिम सांस तक
तुम्हे प्यार करूं,
भू की अंतिम
परिक्रमा से परे
प्यार करता रहूँ.
तुम हो, मैं हूँ,
वरना मै था ही नही.
मेरी ख़ामोशियों का शोर
सिर्फ़ तुमने सुना,
महसूस किया,
दिल की अबोध धड़कन
को धड़कना सिखाया.
बिन तुम्हारे तो मेरा
अस्तित्व ही नहीं,
तुम हो, मैं हूँ,
वरना मै था ही नही.
सुरेश कुमार
११/१०/११
लम्हा तुम्हें सौंप दिया,
बस ये सोचकर कि तुम
मेरी जिन्दगी हो.
जी करता है, वक्त के
अंतिम सांस तक
तुम्हे प्यार करूं,
भू की अंतिम
परिक्रमा से परे
प्यार करता रहूँ.
तुम हो, मैं हूँ,
वरना मै था ही नही.
मेरी ख़ामोशियों का शोर
सिर्फ़ तुमने सुना,
महसूस किया,
दिल की अबोध धड़कन
को धड़कना सिखाया.
बिन तुम्हारे तो मेरा
अस्तित्व ही नहीं,
तुम हो, मैं हूँ,
वरना मै था ही नही.
सुरेश कुमार
११/१०/११
5 comments:
वाह ....समर्पण को दर्शाती हुई सुन्दर रचना
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई बंधुवर ||
खामोशियों को बहुत कम ही लोग सुन पाते हैं.
ख़ामोशी को बखूबी शब्द दिए है आपने....
क्या बात है! वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई
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