कुछ यूँ मेरी गली से गुजरे वो,
घर-आँगन इश्क से महकने लगा I
उनकी नज़र मुझ पर यूँ पड़ी,
हुस्न-ए-सागर दिल मे उतरने लगा II
जो ठहरे वो और मेरे करीब़ आये,
इश्क-ए-बारिश में, फ़िसलने लगा I
और पूछा जो हाल-ए-दिल उसने मेरा,
चौखट पर खड़े-खड़े, मै तो मरने लगा II
उनकी चूड़ियों की खनक में इश्क है,
उनकी सांसों की महक में इश्क है,
इश्क की परिभाषा, उनकी हर अदा है,
बिन बोले उनकी हर भाषा में इश्क है II
- Suresh Kumar
09/12/11
घर-आँगन इश्क से महकने लगा I
उनकी नज़र मुझ पर यूँ पड़ी,
हुस्न-ए-सागर दिल मे उतरने लगा II
जो ठहरे वो और मेरे करीब़ आये,
इश्क-ए-बारिश में, फ़िसलने लगा I
और पूछा जो हाल-ए-दिल उसने मेरा,
चौखट पर खड़े-खड़े, मै तो मरने लगा II
उनकी चूड़ियों की खनक में इश्क है,
उनकी सांसों की महक में इश्क है,
इश्क की परिभाषा, उनकी हर अदा है,
बिन बोले उनकी हर भाषा में इश्क है II
- Suresh Kumar
09/12/11
5 comments:
उनकी चूड़ियों की खनक में इश्क है,
उनकी सांसों की महक में इश्क है,
इश्क की परिभाषा, उनकी हर अदा है,
बिन बोले उनकी हर भाषा में इश्क है.... bhaut hi khubsurat ehsaas.....
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
बहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
तुम्हारे लेखन में भी इश्क आ गया है भई...
बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
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