ज़िन्दगी तू क्या है ?
कभी दर्द-ए-दिल,
कभी दर्द-ए-दवा है,
ऐ ज़िन्दगी तू क्या है?
अपनी बनायी राहों पर,
कभी दौड़े तू, कभी रूके,
अपने वसूलों की ख़ातिर,
खड़ी रहे तो, कभी झुके,
जिसकी दिशा समझ ना पाया,
तू इक ऐसी हवा है I
ज़िन्दगी तू क्या है ?
***********************
अब इन सपनों की नगरी में,
कुछ ख्वाब तेरे कुछ ख्वाब मेरे है,
अतीत के पन्नों मे दबी प्रेम-पंक्ति पर,
प्रेमयुक्त लाल स्याही के घेरे है,
शब्दों को कुरेद कर ज़ेहन में बसा लिया,
जिनमें से कुछ शब्द तेरे और कुछ मेरे है I
*********************************
ऐ शाम-ए-ज़िन्दगी,
अब सूरज ढल चला,
जीवन की धुंधली राहों पर,
खुद का भी ना पता,
आँखों में समन्दर लिये फ़िरते है,
खुद की तलाश में,
ऐ राह-ए-ऱकीब,
मंज़िल है गुमशुदा I
सुरेश कुमार.......
२१/०१/२०१२
कभी दर्द-ए-दिल,
कभी दर्द-ए-दवा है,
ऐ ज़िन्दगी तू क्या है?
अपनी बनायी राहों पर,
कभी दौड़े तू, कभी रूके,
अपने वसूलों की ख़ातिर,
खड़ी रहे तो, कभी झुके,
जिसकी दिशा समझ ना पाया,
तू इक ऐसी हवा है I
ज़िन्दगी तू क्या है ?
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अब इन सपनों की नगरी में,
कुछ ख्वाब तेरे कुछ ख्वाब मेरे है,
अतीत के पन्नों मे दबी प्रेम-पंक्ति पर,
प्रेमयुक्त लाल स्याही के घेरे है,
शब्दों को कुरेद कर ज़ेहन में बसा लिया,
जिनमें से कुछ शब्द तेरे और कुछ मेरे है I
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ऐ शाम-ए-ज़िन्दगी,
अब सूरज ढल चला,
जीवन की धुंधली राहों पर,
खुद का भी ना पता,
आँखों में समन्दर लिये फ़िरते है,
खुद की तलाश में,
ऐ राह-ए-ऱकीब,
मंज़िल है गुमशुदा I
सुरेश कुमार.......
२१/०१/२०१२
12 comments:
बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
बढ़िया प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 23-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
सही परिभाषा दी है आपने आपने ज़िन्दगी की।
जो माँ -बाप को भगवान मान ले, हमें नहीं लगता उसे जीवन और जीवन उद्देश्यों के बारे में कुछ जाने की आवश्यकता बाकी रह गयी ही. यह ती " एकै साधर सब सधे" में समाहित है. हाँ! यह दूसरों के लिए अवश्य एक परभाषा, एक अनुकरणीय उदाहरण है. आपके सफल दाम्पत्य की कामना करते हुए, मर्मस्पर्शी काव्य प्रतुती के लिए आभार. आप के नेक विचारों, श्रवन कुमारी प्रवृत्ति को नमन. आप के माता-पिता को नमन जिन्होंने ऐसे संसार दिए. मेरी बात, संवेदनाएं उन तक पहुचा अवश्य दीजिएगा. मेरा स्नेह एवं आशीर्वाद.
behad prabhavshali rachana hai jindgi ki sachhi tashvir apne pesh ki hai ....badhai ke sath hi abhar.
ज़िन्दगी नामा है यह रचना तमाम रंगों से रु -बा -रु आखिरी पड़ाव ताल लाती है यह रचना आदमी की फितरत है खाब देखना नहीं छोड़ता .खुद से अपरिचित फिर भी आँखों में समन्दर समेटे घूमता है आदमी .बेहतरीन रचना है आपकी .
सुरेश जी,सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
आपको पढकर अच्छा लगा.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
जिंदगी एक स्पष्ट आईना है इस जीवन का
दिल से दिल तक सुन्दर कविता !
बहुत प्रभावशाली सुंदर प्रस्तुति. जिंदगी को बहुत खूबसूरती से परिभाषित किया है.
बधाई.
प्रभावशाली अभिव्यक्ति है
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