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Sunday, September 04, 2011

मैं ढूढ रहा उस लम्हे को....
















मैने अभी लिखा नहीं,
जो अंतर्मन को दिखा नही,
मैं ढूढ रहा उस लम्हे को,
जो अधियारों मे छुपा कहीं.

कलम उठाता हूँ लिखने को,
भाव निकल भी आते है.
हस्त कलम संग कम्पित होते,
शब्द उमड़ नही पाते है.
मै सोच रहा उसे प्रतिपल,
जो मुझमें होकर मिला नही.
मैं ढूढ रहा उस लम्हे को,
जो अधियारों मे छुपा कहीं.

कलम ज़वां, स्याही परिपूर्ण,
लेखन अभिलाषा संपूर्ण,
इत-उत बैठूँ लिखने को,
पर हो जाता हूँ शब्द शून्य.
मैं खोज रहा उन शब्दों को,
जो शब्दकोश में है ही नही.
मैं ढूढ रहा उस लम्हे को,
जो अधियारों मे छुपा कहीं.

पग रखता हूँ पगडंडी पर,
पदचिह्नो की आशा लिये.
उस लम्हे को मैं दिख जाऊँ,
उसकी अभिलाषा लिये.
हैरां हो जाता हूँ हरदम,
पदचिह्न मिलते ही नही.
मैं ढूढ रहा उस लम्हे को,
जो अधियारों मे छुपा कहीं.

तुझको पाने की जिद्द है,
तुझमें खो जाने की जिद्द है.
नित-प्रतिदिन जिज्ञासा बढ़ती,
शब्दकोश में लाने की जिद्द है.
कलम उतारू लिखने को,
स्याही उमड़ी संग चलने को,
ढूढ़ लूँगा ऐ लम्हा तुझे,
तुझको लिख जाने की जिद्द है.

                               सुरेश कुमार
                               ०४/०९/२०११


5 comments:

रेखा said...

सकारात्मक सोच वाली सुन्दर रचना .....

विभूति" said...

बहुत ही अच्छी रचना.....

सागर said...

behtreen rachna...

Suresh Kumar said...

@ Rekha Ji
@ Sushma Ji
@ Sagar Ji

dhanyawaad..diredct dil se..

prabhakar said...

jidh kare, jindagi sidh kare.....

jo kuch hai andar use vyakt kare...

lage raho...with new thoughts of new generation