विरह, वेदना, क्रन्दन,
रोता, बिलखता अबोध मन,
अप्रत्यक्ष जीवन,
उत्कंठित नयन,
मृत इच्छा उद्बोधन,
चहु दिशा अप्रसन्न,
मुर्झाया उपवन,
शून्य-तनन-संवेदन,
यथासमय शिरश्छेदन,
मत-भ्रमित अवलोकन,
उत्सावाग्नि चुभन,
अभिलाषा अभिशून्यन,
भावशून्य अध्यर्थन,
पराकष्ठा ठिठुरन,
दिशाहीन अन्तर्मन,
गहन तिमिर संचयन,
सर्वसुख समापन,
हर्षविहीन नव दुल्हन,
आत्म-सुख निरन्तर दहन,
प्राणप्रिये !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
यही है......................
तुम बिन मेरी परिभाषा.
सुरेश कुमार
११/०९/२०११
10 comments:
समर्पण को दर्शाती हुई बेहतरीन रचना ....
bahut khoobsurat rachna.
samarparn ke bhaavo se pripurn rachna....
सही कहा है आपने ....जीवन में यही समर्पण तो हमें एक दुसरे की कमी का अहसास करवाता है ....समर्पण भाव की एक अनुपम रचना आपका आभार
प्रेम का पर्याय यही है.सच्चा यही समर्पण.
बहुत ही सुंदर.
bahut hi khoobsoorat paribhasha.
जीवन साथी के बिना सब खुशियाँ अधूरी होती हैं।
सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
देत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम ||
bahut pyari kavita, sundar bhaav aur shabd chayan. aisa samarpan virle hin hota hai. shubhkaamnaayen.
शब्दों का अच्छा संयोजन किया है.
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