रात की परछाइयों से हो रहे हो रूबरू,
यूं तो कोई बात होगी...
ठंडी हवा से तेरी पलक का झपकना,
शिहर कर वो तेरा, अपनी हथेली को मलना.
फ़िर अंगडाई लेकर यूं चांद को देखना,
देखकर् उसे, उन्ही खयालों मे डूब जाना,
कोई तो बात होगी...
बैठे हो तन्हा, यूं तो कोई बात होगी.
हृदय से उत्पन्न, मन की तरंगों को सुन रहे हो,
मन की परछाइयों को यू तन्हा तलाश रहे हो.
या मन के अधियारों में यू तन्हा झांक रहे हो,
मन के अधियारों में तो, उजियारों की सौगात होगी.
बैठे हो तन्हा, यूं तो कोई बात होगी.
सोचते-सोचते तेरे अधरों क बन्द हो जाना,
बन्द होकर भी इनका बहुत कुछ् कह जाना.
फ़िर भी डूबते चांद का, कुछ भी समझ ना पाना.
कोई तो बात होगी...
बैठे हो तन्हा, यूं तो कोई बात होगी.
देखो चांद अभी डूबा नही है,
शायद तुम्हारी अनकही बातों को समझ रहा है.
उसके पथ से उसे भ्रमित ना करो,
उसकी तमन्नाओ के परे उसे विफ़लित ना करो,
उसे बता दो, उसे भी शयन कक्ष मे जाना होगा,
फिर कभी तन्हा रातों मे तुमसे मिलने आना होगा,
चांद को भी ना बताया, कोई तो बात होगी.
बैठे हो तन्हा, यूं तो कोई बात होगी.
रात की परछाइयों से हो रहे हो रूबरू,
यूं तो कोइ बात होगी...
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By Suresh Kumar
Geologist
GSI
1 comment:
Bahut sundar likha hai !!
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