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Saturday, July 30, 2011

आत्मग्लानि.......


उठा के मुझको मेरा मन, धरा पे फ़ेंक देता है.
मुकर जाता है, मुझसे ही, गर मुझको देख लेता है,
जो रोता हूँ, तो कहता है, मेरी आँखों में पानी है.
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[१]


मै अपने आप को ही आज़, सहसा देख ना पाया,
खुला था दिल, खुला दिमाग, कुछ भी सोच ना पाया,
अपने आप को दे दी, ये कैसी निशानी है ?
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[२]


मेरी परछाई भी मुझसे, अब पीछा छुड़ाती है,
मै जितना पास आता हूँ, वो उतना दूर जाती है,
वो सीधी है, मै लंगड़ा हूँ, ऐसा दिख रहा मुझको,
पकड़ना चाहता तो हूँ, वो पल में भाग जाती है,
समझ ना पा रहा कुछ भी, कैसी ये कहानी है ?
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[३]


समय आता, चला जाता, उसे मैं देख ना पाता,
निकट होता था मेरे वो, मगर कुछ सोच ना पाता,
उचित उपयोग ना करता, उसे मै व्यर्थ करता था,
उसे मैं फ़ेंक देता था, गर मेरे पास रहता था,
जो ना आया, तो अब किस्मत, लूजी-लंगड़ी-कानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[४]


समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,
मेरे जीवन में तेरा मुल्य, समझ ये आ गया मुझको,
तू इश्वर है, विधाता है, मन में रख लिया तुझको,
ये जीवन तुझपे अर्पण हो, अब मैने ठानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है...[५]


20 comments:

सागर said...

bhaut hi bhaavpur abhivaykti....

Suresh Kumar said...

Saagar ji Hausalafazai ke liye shukragujara hoon....Aapaka swagat hai mere blog pe....

विभूति" said...

बहुत ही खूबसरत रचना...

मनोज कुमार said...

आप सरल और सहज मुहावरे में इस कठिन समय को कविता में साधते हैं।

Suresh Kumar said...

सुषमा जी, धन्यवाद....मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है..

Suresh Kumar said...

मनोज जी... शुक्रिया...ये समय का सच है....

udaya veer singh said...

मेरी परछाई भी मुझसे, अब पीछा छुड़ाती है,
मै जितना पास आता हूँ, वो उतना दूर जाती है,
वो सीधी है, मै लंगड़ा हूँ, ऐसा दिख रहा मुझको,
पकड़ना चाहता तो हूँ, वो पल में भाग जाती है,
नीरवता में जीने का सार्थक प्रयास शब्द को स्वर प्रदान करता सृजन सराहनीय है ...शुभकामनायें जी ../

Suresh Kumar said...

उदय वीर सिंह जी, बहुत शुक्रगुजार हूँ आपके सम्पूरक भाव के लिये...
आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है....

कविता रावत said...

समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,
मेरे जीवन में तेरा मुल्य, समझ ये आ गया मुझको,
तू इश्वर है, विधाता है, मन में रख लिया तुझको,
ये जीवन तुझपे अर्पण हो, अब मैने ठानी है,
ये मेरी आत्मग्लानि है,ये मेरी आत्मग्लानि है.....
...sach jisne samay ko pahchan liye usse samjho jeena seekh liya.... jab jaago tabhi savera...
bahut badiya prastuti..

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से समय का सच लिखा है ..

Suresh Kumar said...

Kavita ji...shukriya...mera utsaah badhaane ke kiye...
welcome to my blog....

Suresh Kumar said...

Sangeeta Swaroop Ji...dhanyawaad...
welcome to "Meri Kalpanaayen"...

निवेदिता श्रीवास्तव said...

समय तेरी उपयोगिता को, कभी मैं आंक ना पाया,
तू मेरे घर में बैठा था, तुझे मैं झाँक ना पाया,....
........खूबसरत रचना!

Suresh Kumar said...

Niwedita Ji..dhanyawad..
swagata hai aapaka..

vidhya said...

बहुत ही खूबसरत रचना...
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।

Suresh Kumar said...

Vidhya ji..shukriya..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुरेश जी एक अच्छी रचना के लिए बधाई...

Suresh Kumar said...

S.M.Habib Ji..tahe dil se shukriya ada karataa hoon...
aapaka swagata hai mere blog par...

ana said...

umda rachana.....bahut sundar

Suresh Kumar said...

Ana ji..taareef ke liye shukragujaar hoon...
swaagata hai aapakaa mere blog par..