ना अंजन, ना श्रृंगार, अद्भुत तेरी सौन्दर्य छटा,
तन यौवन का चरमबिन्दु, अधर खुले, बरसे घटा,
बंद पलक में निशा बसे, खुली पलक में भोर,
हृदय-मुग्ध करती हो प्रतिपल, इत-उत व चहुँ ओर.[१]
बिन घुँघरू पग अतिशोभित, बिन कंगन ये हस्त,
प्रकृति-अंश समान ये काया, करे सदा मदमस्त,
मनु तुम-पर मन से मरा, इतना सुन्दर रूप,
तुम सावन हो, तुम बरखा, तुम हो रति स्वरूप. [२]
*****************************************
मैं देखूँ इश्क की गलियाँ, मुझे ऐसी नज़र दे दो,
छुपालो अपनी आँखों में, सुकूँ की इक बसर दे दो.
मैं राही हूँ मोहब्ब्त का, मोहब्बत रग में बसती है.
चलो अब साथ बस मेरे, कसम ये हमसफ़र दे दो. [३]
खुश्बू-ए-इश्क के पंछी, चलो हम साथ उड़ जायें,
जहाँ हो अन्त लम्हों का, वहाँ जाकर ठहर जायें,
बसायें आशियान इक, मोहब्बत नाम हो उसका,
हम जीते है मोहब्ब्त में, मोहब्बत में गुज़र जायें. [४]
सुरेश कुमार
२८/०९/२०११
तन यौवन का चरमबिन्दु, अधर खुले, बरसे घटा,
बंद पलक में निशा बसे, खुली पलक में भोर,
हृदय-मुग्ध करती हो प्रतिपल, इत-उत व चहुँ ओर.[१]
बिन घुँघरू पग अतिशोभित, बिन कंगन ये हस्त,
प्रकृति-अंश समान ये काया, करे सदा मदमस्त,
मनु तुम-पर मन से मरा, इतना सुन्दर रूप,
तुम सावन हो, तुम बरखा, तुम हो रति स्वरूप. [२]
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मैं देखूँ इश्क की गलियाँ, मुझे ऐसी नज़र दे दो,
छुपालो अपनी आँखों में, सुकूँ की इक बसर दे दो.
मैं राही हूँ मोहब्ब्त का, मोहब्बत रग में बसती है.
चलो अब साथ बस मेरे, कसम ये हमसफ़र दे दो. [३]
खुश्बू-ए-इश्क के पंछी, चलो हम साथ उड़ जायें,
जहाँ हो अन्त लम्हों का, वहाँ जाकर ठहर जायें,
बसायें आशियान इक, मोहब्बत नाम हो उसका,
हम जीते है मोहब्ब्त में, मोहब्बत में गुज़र जायें. [४]
सुरेश कुमार
२८/०९/२०११