तेरे ख़ामोश अल्फ़ाज़,
अक्सर उस मोड़ पर टकरा जाते है,
जिस मोड़ पर तू मुझे, तन्हा छोड़ गया है...अक्सर उस मोड़ पर टकरा जाते है,
तुझसे उसी मोड़ पर टकराऊं,
कम्बख़्त दिल है कि, धड़कना भूल गया है...
वो मासूम रातें, गुमशुम अकेली है,
अक्सर रोया करती है,
तेरी यादों का झोका जो उन्हे छू लेता है...
तेरा जाना, जिन्दगी का जाना,
धड़कनो का रेगिस्तां मे धड़कना,
सांसों का दफ़न हो जाना लगता है...
तेरे ख़यालात रगों में दौड़ रहे हैं,
इक पल भी तुम्हे भूल पाना,
रूह का ख़त्म हो जाना लगता है...ऐ खुदा !!! मेरी पैदाइश,
इस जहां में मुकम्मल कर दे,
उसी मोड़ पर उससे मिला दे,
वरना ये जीना भी, मर जाना लगता है...
9 comments:
" जिस मोड़ पर तू मुझे, तन्हा छोड़ गया है..
..... तुझसे उसी मोड़ पर टकराऊं ....."
क्या बात है !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आपकी रचना ने काफी प्रभावित किया है .इसीलिए मैंने फोलो भी कर लिया है ....
@ Abhishek bhaiya
@ Shri S.N.Shukla ji
@ Rekha Ji
aap sabhi ko utsahawardhan ke liye dil se shukriya...
दिल से लिखी गई रचना। अच्छा लगा इसे पढ़ना।
खामोश अल्फाज़... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती....
apke khamosh alfaaz bhi bhaut kuch kah rahe hai....
apke khamosh alfaaz bhi bhaut kuch kah rahe hai....
@ Shri Manoj Ji
@ Sushama Ji
@ Sagar Ji
dhanyawad dil se..accha lagata hai jab aap jaise suwicharak aur sajjan log apani pratikriya wyakt karate hai.
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