"एक प्रेमी को उसकी प्रेमिका के याद मे समर्पित कविता.."
प्रिये आज फिर बारिश हो रही है,
तुम्हारा चेहरा बारिश की,
हर एक बूँद मे नज़र आ रहा है.
जी करता है,
इन बूँदों को मुट्ठी में समेट लूं,
कह दूँ इन बारिश की बूँदों से,
बस जाओ
मेरे दामन में,
मेरे पागल मन में,
मेरी हर सांसों में
मेरे रग रग में,
जब तक तुम्हारा जी चाहे,
मेरे मनरूपी धरा पे बरसते रहो.
तुम्हारी हर एक बूँद मुझे,
मेरे प्रियवर की याद दिलाती है.
हमारी पहली मुलाकात की
तुम्ही तो साक्षी हो.
बारिश तो मेरा दामन थामे हुई थी,
पर शायद, गगन और धरा मे,
कुछ अनबन हो गयी,
गगन ने अपनी विरासत बारिश
को वापस बुला लिया.
बारिश गयी,
मानो मेरे मन के आँगन में
बिजली गिर पड़ी,
तुम्हारी यादों का पुल
कम्पित हो उठा,
उसके स्तम्भ हिलने लगे,
मैने गगन से गुहार लगायी,
कहा, हे गगन तुम भी तो धरा
से प्यार करते हो,
तुम्ही हो जो इसकी भावनाओ,
संवेदनाओ को समझ सकते हो,
फिर ऐसा क्यों,
ये धरा प्यासी है
और इसकी प्यास बुझाने वाला,
उससे मोहब्ब्त करनेवाला,
ये गगन रूष्ट है, सोया है या
संवेदनाविहीन हो गया है,
गगन को शायद मेरी बातों में
मेरी मोहब्ब्त का दर्द,
एकदम साफ दिखाई दिया,
उसे भी उसकी मोहब्ब्त धरा की
याद आयी..और वो पुनः धरा
से मिलने आया..
प्रिये अब फिर बारिश हो रही है,
और तुम्हारा चेहरा बारिश की,
हर एक बूँद मे नज़र आ रहा है.
सुरेश कुमार
१०/०८/२०११
5 comments:
बारिश भी एक कमाल की प्रेरणा है. कभी 'आषाढ़ का एक दिन' लिखवा देती है तो कभी 'मेघदूत'.
vastav men sundar rachnaa ,aabhaar
बढ़िया है!!
ati sundar
har dil mein kabhi na kabhi barish hoti hai..bus badal ulfat ki jindagi me aa jaye....
padkar sachmujh barish ho gayi meri mun me.Umda soch ..
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