अंतर्मन की दिव्यदृष्टि में,
अंधियारों मे घुट-घुट कर ये,
नि:शब्द व असफल हुई,
शब्दकोश और मार्गदर्शिका,
बनकर तुम प्रियवर आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
प्राण-प्रिये तुम प्राणेश्वरी,
तन मन में कंठस्थ हुई,
तुम्हे सोचकर कलम उठे,
तुम हर रचना मे व्यक्त हुई,
अधर खुले या बंद हुए,
बस तेरे ही स्वर आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
तुम, तुम ना रही, मै, मै ना रहा,
तुम मुझमें बसी, मै तुझमें बसा,
तुम, मै हो गयी, मै तुम हो गया,
"दो जिस्म मगर एक जान है हम"
हो सार्थक ये उदाहरण,
जब-जब ये हम पर आये,
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
जब मन की रचना अपने पथ से,
विकृत व विफल हुई,अंधियारों मे घुट-घुट कर ये,
नि:शब्द व असफल हुई,
शब्दकोश और मार्गदर्शिका,
बनकर तुम प्रियवर आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
प्राण-प्रिये तुम प्राणेश्वरी,
तन मन में कंठस्थ हुई,
तुम्हे सोचकर कलम उठे,
तुम हर रचना मे व्यक्त हुई,
अधर खुले या बंद हुए,
बस तेरे ही स्वर आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
तुम, तुम ना रही, मै, मै ना रहा,
तुम मुझमें बसी, मै तुझमें बसा,
तुम, मै हो गयी, मै तुम हो गया,
"दो जिस्म मगर एक जान है हम"
हो सार्थक ये उदाहरण,
जब-जब ये हम पर आये,
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
- सुरेश कुमार
२३/०८/२०११
9 comments:
जिसके बारे में आपने ये प्यारी पंक्तियाँ लिखी है, बहुत सुंदर लिखी है।
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
जब मन की रचना अपने पथ से, विकृत व विफल हुई,
अंधियारों मे घुट-घुट कर ये,
नि:शब्द व असफल हुई,
शब्दकोश और मार्गदर्शिका,
बनकर तुम प्रियवर आये.
...sach esi tarah do jab ek hote hai to jeewan sarthak ho jaata hai..
..bahut badiya bhavabhikti..
Maa-pitaji kee photo aur jiwansangni kee photo dekhkar man ko behad khushi huyee..
iswar sabko aisa saput beta aur jiwansathi de, yahi man mein aa raha hai..
sabko meri haardik shubhkamnayen..
"श्रीमती कविता रावत जी"...आपने बहुत बड़ी बात कह दी...समझ नही आ रहा आपको कैसे आभार प्रकट करूँ...किन्तु आपने जो बात कही है उसे मै जीवन भर याद रखुंगा..बहुत बहुत धन्यवाद....मेरे ब्लाग पर आपका सदैव स्वागत है...
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
जब मन की रचना अपने पथ से,
विकृत व विफल हुई,
अंधियारों मे घुट-घुट कर ये,
नि:शब्द व असफल हुई,
शब्दकोश और मार्गदर्शिका,
बनकर तुम प्रियवर आये.
मेरी रचना, हर काव्यपंक्ति में,
सदा तुम नज़र आये.
prem mei doobi hui ek sunder rachna ke liye badhai...
सुरेश कुमार जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगसपाट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
First of all thanks for visiting my blog, I really appreciate that.
Beautiful expressions here.
Nice read !!
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