ग़ुस्ताख़ियों के शमां में, बरबादियों का ज़श्न हुआ,
महफ़िल-ए-बेवफ़ाई में, हर लम्हा अश्क से बयां हुआ.
जो इक ग़ुस्ताख़ नज़र ने, हाल-ए-दिल को पढ़ लिया.जश्न-ए-बरबादी, महफ़िल-ए-इश्क में बदल गयी.
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ऐ दिल-ए-नादां, तू बेवफ़ा तो बन,
वो आयें तुझे मनाने, कुछ यूँ खता तो कर,इश्क-ए-नाराज़गी में प्यार, बेशुमार होता है,
इश्क-ए-नाराज़गी का यूँ, ऐसे दीदार कर,
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उनकी मदहोश़ नज़रें कातिल हैं, मालूम था,
पर इतनी कातिल कि मेरे हर लम्हों पर वार करे,
उनसे नज़रे मिली तो खुद-ब-खुद समझ गया.
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दिल-ए-ख्वाइशें सिर्फ़ तेरी इनायत करती है,
मोहब्बत-ए-जुनूं को खुदा का दर्ज़ा देती है.
इन आंखों को सिर्फ़, रहगुज़र का दीदार हो,
जिस्म-ए-रूह, तुझसे बेइंतहां मोहब्बत करती है.
सुरेश कुमार
०२/०८/२०११
5 comments:
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
Shri S.N.Shukla Ji..aapko bhi Mitrata Diwas ki dher saari badhaaiya..
bahut bahut dhanyawad aapki shubhakaamnao ke liye..
बहुत खुबसूरत....
bhaut hi pyari rachna....
Umda likha hai
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