जिन्दगी की किताब में
नया अध्याय जोड़कर,
हमेशा खुश रहता हूँ,
दौर ये आ गया कि मेरी जुबां पे
तुम्हारा नाम अक्सर आ जाता है,
एकांत में सोचता हूँ मैने ऐसी रचना,
कैसे रची जो मेरे मानसपटल में हमेशा
छायी रहती है.
तुम्हरा हर एक शब्द मेरे दिलो दिमाग
में गूँजता रहता है,
मुझे अपने प्रवाह में तेजी से बहा लेता है
और मै सहज बहता चला जाता हूँ,
अपने आप को भुलाकर मै कुछ
यूँ हो गया हूँ,
मानो, मैने गर जन्म लिया तो उसी,
रचना के लिये जो सिर्फ,
मेरी कलम से ही लिखी जा सकती है,
उसकी संवेदना, उसके भाव सिर्फ़ मै समझ
सकता हूँ.
उसे सिर्फ मै पढ़ सकता हूँ.
वो कलम मै, स्याही हमारी मोहब्बत
और प्रिये वो रचना तुम हो,
जिसे मैने खुद लिखा है.
सुरेश कुमार
०७/०८/२०११
6 comments:
खूबसूरत प्रस्तुति,बधाई ,मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत खूब - बहुत सुंदर
वाह ! क्या कल्पना है.
बहुत ही खुबसूरत रचना लिखा है....
@ Shri S.N Shukla Ji
@ Shri Rakesh Kaushik Ji
@ Abhishek Bhaiya
@ Shri Chandra Bhushan Ji
@ Sushama Ji
aap logo ka bahut bahut dhanyawad..jab aap jaise log utsahwardhan karate hai to aur bhi likhane ka man karata hai...
badi khubsurat hai aapki rachana jise badi khubsurati se likha hai
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