प्रेमरुपी किताब,
के हर अध्याय में,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...की हर बूँद-हर प्यास में,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...
मेरे प्रेम-पाठ,
मेरे प्रेम-पंक्ति,मेरे प्रेम-वाक्य,
मेरे प्रेम-शब्द,
मेरे प्रेमाक्क्षर,
मेरे प्रेमपृष्ठ में,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...
मेरे मानसिक तरंगों
तुम पर ठहरती,
अपलक निहारती,
सदैव स्मरण करती,
मेरी अभिलाषा, उल्लास,
हृदयावास में,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...
प्रेम-प्राप्य, तुम प्रेम यथेष्ठ,
निरवधि तक प्रेमकाल में,
प्रिये !!!,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...
- सुरेश कुमार
२५/०८/२०११
3 comments:
सुंदर प्रेममयी रचना बधाई ......
मेरे प्रेम-पाठ,
मेरे प्रेम-पंक्ति,
मेरे प्रेम-वाक्य,
मेरे प्रेम-शब्द,
मेरे प्रेमाक्क्षर,
मेरे प्रेमपृष्ठ में,
सिर्फ़ तुम..सिर्फ़ तुम हो...प्रेम ही प्रेम बहुत खुबसूरत अभिवयक्ति....
bahut khoobsurat bhaav.
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